ग्रिश्नेश्व मंदिर एलोरा

Grishneshwar Temple

ग्रिश्नेश्वर मंदिर एलोरा (Grishneshwar Temple, Ellora) भारत के महाराष्ट्र राज्य में स्थित है और एलोरा के यशोगिरी ग्राम में स्थित है। यह एक प्रमुख हिंदू मंदिर है और भगवान शिव को समर्पित है।

ग्रिश्नेश्वर मंदिर, जिसे अल्लोरा के गुफा मंदिरों का भी नाम दिया जाता है, एलोरा के मशहूर मंदिरों का एक हिस्सा है। यह एलोरा में पांचवा ज्योतिर्लिंग माना जाता है।

इस मंदिर का निर्माण 18वीं शताब्दी में किया गया था और इसे चांद्रगुप्त द्वितीय के शासनकाल में पुनः निर्माण किया गया। इसका निर्माण गहन शिव-भक्ति और वास्तुकला के साथ किया गया है।

ग्रिश्नेश्वर मंदिर विशाल गणपति द्वारा सुरक्षित किया जाता है, जिसे “ग्रिश्नेश्वर” नामक भगवान शिव की शक्ति का प्रतीक माना जाता है। मंदिर के गर्भगृह में भगवान ग्रिश्नेश्वर की मूर्ति स्थापित है।

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा

कथा के अनुसार, एक समय परशुराम ऋषि ने कार्तिकेय को माता पार्वती के सामर्थ्य पर चुनौती दी। पार्वती ने आग्रह किया कि वह उन्हें अपने शिव जी के सामर्थ्य को भी चुनौती दें। परशुराम ने इसे स्वीकार किया और एक बार उन्होंने अपने धनुष से सारे शिवलिंगों को तोड़ दिया।

पार्वती और कार्तिकेय को देखकर विशेष रूप से दुःखित होकर भगवान शिव ने एक गिरिजा (पर्वती) स्वरूपी ज्योतिर्लिंग की उपस्थिति बताई। यह ज्योतिर्लिंग उन्होंने तत्काल प्राप्त किया और इसे घृष्णेश्वर नामकरण किया।

इस कथा के अनुसार, घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग शिव के सामर्थ्य और शक्ति को प्रतिष्ठित करता है। यह ज्योतिर्लिंग पापों से मुक्ति, सुख, समृद्धि और आध्यात्मिक उन्नति की प्राप्ति के लिए भक्तों द्वारा पूजे जाते हैं।

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग की संरचना का इतिहास

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग की संरचना का इतिहास महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में स्थित एलोरा के ग्रिश्नेश्वर मंदिर से जुड़ा हुआ है। यह मंदिर महाराष्ट्र के चालुक्य काल में 7वीं या 8वीं शताब्दी में निर्मित किया गया था। घृष्णेश्वर मंदिर को ग्रिश्नेश्वर विश्राम और ज्ञानकाष्ठ नामों से भी जाना जाता है। इस मंदिर का निर्माण हेमद्रप्ति नामक चालुक्य राजा के अधीनस्थ कारीगरों द्वारा किया गया था। इसे शासक रच्छापल्लि द्वारा बनवाया गया था, जो चालुक्य वंश के एक महत्त्वपूर्ण सदस्य थे। घृष्णेश्वर मंदिर की संरचना विशेषज्ञता का प्रतीक है। यह पंचायतन स्थापना का उदाहरण है, जिसमें मुख्य गर्भगृह के चारों ओर चौबीस छोटे गर्भगृह स्थापित हैं। गर्भगृह में मूर्ति के रूप में घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थापित है। मंदिर की वास्तुकला और स्थापत्य की श्रेष्ठता ने इसे एक महत्त्वपूर्ण और प्रमुख पूजा स्थल बना दिया है। यह मंदिर एलोरा गुफा क्षेत्र में स्थित है, जिसमें अन्य प्रमुख मंदिर भी हैं। इसकी वास्तुकला और कला ने इसे एक प्रसिद्ध और महत्त्वपूर्ण धार्मिक स्थल बनाया है, जिसे पर्यटक और शिव भक्त द्वारा आदर्श स्थल माना जाता है।

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग की कहानी

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग की कहानी पौराणिक ग्रंथों में विस्तार से वर्णित है। इसके अनुसार, एक समय की बात है जब एक ब्राह्मण नामक ऋषि अपनी पत्नी के साथ तीर्थयात्रा के लिए निकले। रास्ते में वे एक वन में आए, जहां प्रमुख ऋषि विश्वामित्र तपस्या कर रहे थे। ब्राह्मण ऋषि ने अपनी पत्नी को विश्वामित्र के आश्रम में छोड़ दिया और वह विदेशी देश में यात्रा करने चले गए।

विदेशी देश में अवधूत नामक एक वृद्ध साधु ब्राह्मण के आश्रम में रुके। वह वृद्ध साधु ब्राह्मण बहुत संतुष्ट हुए और उन्हें एक गोल्डन घड़ी दी। ब्राह्मण ने वह घड़ी धन्यवाद कहकर ले ली, लेकिन उन्होंने इसे सुरक्षित रखने के लिए एक पेड़ की जड़ में छिपा दिया। जब ब्राह्मण अपनी पत्नी के साथ वापस लौटे, तो वे घड़ी की याद नहीं रखते थे।

 

एक दिन ब्राह्मण और उनकी पत्नी जंगल में घूम रहे थे, और उन्हें अत्यंत भूख और प्यास लगी। उन्होंने एक समीप के विश्राम स्थल में रुककर खाने की तैयारी की। उन्होंने पानी उठाने के लिए एक कुंड खोदा, और उन्हें अचानक घड़ी की याद आई। वे जड़ में छिपी घड़ी को खोदे के निचे से निकालने लगे और वहां उन्हें एक आश्चर्यजनक दर्शन हुआ।

जब घड़ी निकाली गई, तो उसके साथ अनेक सुंदर रत्न और अमूल्य रत्न भी निकले। ब्राह्मण ने इसे एक शिवलिंग के रूप में मान्यता दी, और उसे घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित किया। इसके बाद से यहां पर एक मंदिर निर्मित हुआ, जहां लोग शिव की पूजा करते हैं और उन्हें आशीर्वाद लेने आते हैं। घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग को मान्यता है कि यह पापों का नाश करने और शिव की कृपा को प्राप्त करने का स्थान है।

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