त्र्यंबकेश्वर मंदिर
Trimbakeshwar Temple
त्र्यंबकेश्वर मंदिर महाराष्ट्र के नासिक जिले में स्थित है और यह भारतीय हिंदू धर्म के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है। यह मंदिर त्र्यंबकेश्वर नामक भगवान शिव को समर्पित है। इसका महत्व प्राचीन धार्मिक और मान्यता संबंधित है।
त्र्यंबकेश्वर मंदिर का महत्व संबंधित है उसके स्थान के साथ। यह मंदिर त्र्यंबक जलसंग्रहण स्थल के पास स्थित है, जिससे त्र्यंबका नदी निकलती है। त्र्यंबका नदी भागीरथी नदी की एक शाखा है और इसे जिन्दगी की जलस्रोत के रूप में माना जाता है। इसे मान्यता के अनुसार माता गंगा का प्रतीक माना जाता है।
त्र्यंबकेश्वर मंदिर के अलावा, इसका महत्व धार्मिक दृष्टिकोण से भी है। मान्यता के अनुसार, यहां शिवलिंग पर लगातार जल टपकता है, जो अत्यंत अद्भुत माना जाता है। यह जल त्रिदेवी गंगा, यमुना और सरस्वती की संयोग से उत्पन्न माना जाता है। यहां ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर के मिलाजुला रूप को दर्शाने के लिए इस्थान को “त्रिमेक्ष” भी कहा जाता है।
त्र्यंबकेश्वर मंदिर के पीछे की कहानी क्या है?
त्र्यंबकेश्वर मंदिर के पीछे कई कथाएं और मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। इनमें से एक प्रमुख कथा है, जो शिव पुराण में उल्लेखित है।
संदर्भ में, एक ब्राह्मण ऋषि नामक ऋषि अपनी पत्नी अनसूया के साथ नासिक जंगल में वास कर रहे थे। उनकी एक बड़ी इच्छा थी कि उन्हें पुत्र प्राप्त हो। उन्होंने देवताओं की आराधना शिव विष्णु और ब्रह्मा को करनी शुरू की ताकि उन्हें अपनी इच्छा पूरी हो सके। इन त्रिदेवों ने उनकी प्रार्थना को सुनते हुए उन्हें वरदान दिया कि उनकी पत्नी अनसूया तीनों देवताओं के रूप में उन्हें पुत्र प्राप्त करेंगी।
कुछ समय बाद, अनसूया ने त्रिदेवों को अपने घर बुलाया और उनकी परीक्षा के रूप में उनसे यह विनती की कि वे उन्हें अपने पुत्रों की अर्थात् तीनों देवताओं को अपनी आँखों से निहारें। देवताएं इसे मान लीं और उन्होंने अपने रूप बदलकर अनसूया के सामने प्रकट हो गए। अनसूया ने अति संतुष्टि होकर त्रिदेवों को अपनी आँखों से निहारा और फिर उन्हें अपने पुत्रों के रूप में स्वीकार कर लिया।
त्रिदेवों की इस कृपा और अनसूया के पवित्रता को देखकर ऋषि और अनसूया को त्रिमेक्ष (त्र्यंबक) मंदिर निर्माण करने की आज्ञा मिली। त्रिमेक्ष मंदिर अनसूया के नाम पर भी जाना जाता है, क्योंकि उन्होंने इसका मंदिर निर्माण किया था।
यह कथा त्र्यंबकेश्वर मंदिर के पीछे की कहानी का एक रूप है और इसे स्थानीय पारंपरिक कथाओं और मान्यताओं में प्रमुखता से उल्लेखा जाता है।
त्र्यंबकेश्वर में कौन कौन सी पूजा होती है?
श्रावण सोमवार पूजा: मासिक श्रावण महीने के सोमवार को शिवरात्रि के तौर पर मनाया जाता है। इस दिन मंदिर में भक्तों द्वारा भगवान शिव की पूजा और अर्चना की जाती है। महाशिवरात्रि पूजा: महाशिवरात्रि तिथि पर त्र्यंबकेश्वर मंदिर में विशेष पूजा और उत्सव मनाए जाते हैं। लाखों शिव भक्त इस दिन मंदिर में आकर शिव की पूजा करते हैं। काल सर्प दोष निवारण पूजा: त्र्यंबकेश्वर मंदिर में काल सर्प दोष निवारण के लिए विशेष पूजा की जाती है। यह पूजा काल सर्प दोष से प्रभावित व्यक्तियों को शांति और सुख के लिए की जाती है। रुद्राभिषेक पूजा: रुद्राभिषेक पूजा में शिवलिंग को गंगाजल, धूप, दीप, बेलपत्र, पुष्प, धान्य आदि से सजाया जाता है। इस पूजा के द्वारा भक्त भगवान शिव को समर्पित होते हैं और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। श्री सूक्त अर्चना: त्र्यंबकेश्वर मंदिर में श्री सूक्त के चंडी पाठ और अर्चना की जाती है। यह पूजा लक्ष्मी माता की कृपा और धन-समृद्धि के लिए की जाती है। इनके अलावा भक्त अपनी विशेषताओं और आवश्यकताओं के अनुसार अन्य प्रकार की पूजाओं का आयोजन भी कर सकते हैं।
पापों से मुक्ति दिलाने वाले ज्योतिर्लिंग की कथा
त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा अत्यंत महत्वपूर्ण है और हिंदू धर्म के मान्यताओं के अनुसार इसकी महिमा अनंत है। त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग नासिक शहर में स्थित है, जो महाराष्ट्र राज्य के पश्चिमी भाग में स्थित है। इस ज्योतिर्लिंग की कथा निम्नलिखित है:
कथा के अनुसार, एक समय की बात है जब एक राजा नासिक नगरी में शासन कर रहा था। राजा के दो बेटे थे, जिनके नाम विश्वरूप और विश्वमित्र थे। विश्वरूप बड़े और दूसरे बेटे विश्वमित्र छोटे थे।
एक दिन, विश्वरूप ने गलत कार्य कर दिया और उसने अपने पिता की सेवा में उठने का निर्णय लिया। यह बात विश्वमित्र को अत्यंत दुखी कर गई और उसने विश्वरूप को राज्य छोड़ने के लिए कहा।
विश्वरूप ने अपने भाई के कथित अनुरोध पर राज्य छोड़ दिया और उन्होंने संतान धर्म ग्रंथों के आचार्यों के पास जाने का निर्णय लिया। वह उनकी आश्रय लिए नासिक नगरी में पहुंचे, जहां उन्होंने तपस्या शुरू की।
विश्वमित्र की तपस्या के दौरान, देवी गंगा नदी नासिक में उत्पन्न हुई और अपने जल को विश्वमित्र के आश्रय में धारण कर लिया। इससे विश्वमित्र के आश्रय में बहुतायत शक्ति और आनंद की भावना उत्पन्न हुई।
यह जानकर विश्वमित्र को अपने बड़े भाई विश्वरूप की याद आई और उन्होंने विश्वरूप को नासिक लेकर आए और उनकी शुभकामनाएं दीं। विश्वरूप ने अपने भाई के साथ भगवान शिव की पूजा की और त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग का दर्शन किया।
उनकी भक्ति और पूजा से शिव भगवान खुश हुए और उन्होंने विश्वरूप को आशीर्वाद दिया कि वह अपने पापों से मुक्त हो जाएगा और विश्वरूप की सभी मनोकामनाएं पूरी होंगी।
इस प्रकार, त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग ने विश्वरूप को पापों से मुक्ति प्रदान की और उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी हुईं। इसी कारण से यह ज्योतिर्लिंग पापों से मुक्ति दिलाने वाला माना जाता है।